Waqf बिल में हुए प्रमुख बदलाव..जो Waqf Act, 1995 को संशोधित करता है:
- नाम में बदलाव:
- Waqf Act, 1995 का नाम बदलकर "Unified Waqf Management, Empowerment, Efficiency and Development Act, 1995" (UMEED Act) कर दिया गया है। यह बदलाव वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को आधुनिक और पारदर्शी बनाने के उद्देश्य को दर्शाता है।
- 'वक्फ बाय यूजर' की अवधारणा में संशोधन:
- पहले "वक्फ बाय यूजर" के तहत बिना औपचारिक दस्तावेजों के भी लंबे समय तक धार्मिक उपयोग में लाई गई संपत्तियों को वक्फ माना जा सकता था। नए बिल में यह प्रावधान स्पष्ट किया गया है कि केवल वे संपत्तियाँ जो इस कानून के लागू होने से पहले वक्फ के रूप में पंजीकृत हैं, मान्य होंगी, बशर्ते वे विवादित या सरकारी जमीन न हों। भविष्य में इस आधार पर नए वक्फ दावे स्वीकार नहीं होंगे।
- पांच साल तक इस्लाम का पालन करने की शर्त:
- अब वक्फ बनाने के लिए यह जरूरी है कि व्यक्ति कम से कम पांच साल से इस्लाम का पालन कर रहा हो। इस प्रावधान की आलोचना हुई है, क्योंकि यह हाल के धर्म परिवर्तन करने वालों को वक्फ बनाने से रोकता है।
- गैर-मुस्लिमों की भागीदारी:
- केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान किया गया है। इसमें गैर-मुस्लिम सीईओ की नियुक्ति भी संभव है। हालांकि, गैर-मुस्लिमों की संख्या बोर्ड में अल्पसंख्यक ही रहेगी।
- महिलाओं और विभिन्न समुदायों का प्रतिनिधित्व:
- वक्फ बोर्ड में कम से कम दो मुस्लिम महिलाओं और शिया, सुन्नी, बोहरा, अघाखानी जैसे विभिन्न मुस्लिम समुदायों के प्रतिनिधियों को शामिल करना अनिवार्य किया गया है। यह समावेशिता को बढ़ावा देने के लिए है।
- संपत्ति प्रबंधन में पारदर्शिता:
- सभी वक्फ संपत्तियों को छह महीने के भीतर एक केंद्रीय डिजिटल पोर्टल पर पंजीकृत करना अनिवार्य है। इससे संपत्तियों का रिकॉर्ड व्यवस्थित होगा और दुरुपयोग कम होगा।
- सालाना 1 लाख रुपये से अधिक आय वाली वक्फ संस्थाओं का ऑडिट राज्य द्वारा नियुक्त ऑडिटर से कराना जरूरी है।
- जिला कलेक्टर की भूमिका:
- वक्फ संपत्तियों के सर्वे और विवादित संपत्तियों के स्वामित्व का फैसला अब जिला कलेक्टर या उनके द्वारा नामित अधिकारी करेंगे, न कि वक्फ बोर्ड। यह सरकारी जमीन को वक्फ के दावों से बचाने के लिए है।
- वक्फ ट्रिब्यूनल का पुनर्गठन:
- पहले दो सदस्यों वाले ट्रिब्यूनल को अब तीन सदस्यों का बनाया गया है, जिसमें एक जिला जज, एक संयुक्त सचिव स्तर का अधिकारी और एक मुस्लिम कानून विशेषज्ञ शामिल होगा।
- ट्रिब्यूनल के फैसले अंतिम नहीं होंगे; इनके खिलाफ 90 दिनों के भीतर हाई कोर्ट में अपील की जा सकती है।
- सरकारी संपत्ति पर दावे खत्म:
- अगर कोई सरकारी संपत्ति गलती से वक्फ के रूप में दर्ज हो गई थी, तो वह अब वक्फ नहीं मानी जाएगी। ऐसे मामलों में जिला कलेक्टर अंतिम निर्णय लेगा।
- वक्फ बोर्ड की शक्तियों में कमी:
- पहले वक्फ बोर्ड के पास संपत्ति को वक्फ घोषित करने की शक्ति थी (सेक्शन 40), लेकिन अब यह अधिकार हटा दिया गया है। इससे मनमाने दावों पर रोक लगेगी।
- वंशानुगत अधिकारों की सुरक्षा:
- वक्फ-अलाल-औलाद (पारिवारिक वक्फ) में यह सुनिश्चित किया गया है कि दानकर्ता के वारिसों, विशेष रूप से महिलाओं के उत्तराधिकार अधिकारों का हनन न हो।
- लिमिटेशन एक्ट का लागू होना:
- वक्फ संपत्ति के दावों पर अब लिमिटेशन एक्ट, 1963 लागू होगा, जिससे लंबे समय तक चलने वाले मुकदमों में कमी आएगी।
- केंद्र सरकार की बढ़ी भूमिका:
- केंद्र सरकार को वक्फ पंजीकरण, ऑडिट और नियम बनाने का अधिकार दिया गया है। ऑडिट अब CAG या उसके नामित अधिकारी द्वारा हो सकता है।
ये बदलाव 2 अप्रैल, 2025 को लोकसभा और 3 अप्रैल, 2025 को राज्यसभा में पारित हुए थे। सरकार का कहना है कि ये सुधार वक्फ प्रबंधन को पारदर्शी और कुशल बनाएंगे, जबकि विपक्ष इसे धार्मिक स्वायत्तता पर हमला मानता है।
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