सिया (शिया) और सुन्नी इस्लाम की दो प्रमुख शाखाएँ हैं, और इनके बीच मुख्य अंतर उनकी मान्यताओं, परंपराओं और इतिहास में निहित हैं। यहाँ इनके बीच कुछ बुनियादी अंतर बताए जा रहे हैं:
उत्तराधिकार का विवाद:
शिया मुसलमान मानते हैं कि पैगंबर मुहम्मद के बाद उनके चचेरे भाई और दामाद अली इब्न अबी तालिब को पहला खलीफा होना चाहिए था, क्योंकि पैगंबर ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी चुना था।
सुन्नी मानते हैं कि पैगंबर ने कोई स्पष्ट उत्तराधिकारी नियुक्त नहीं किया, और अबू बकर (पैगंबर के ससुर और करीबी सहयोगी) को पहला खलीफा चुना जाना सही था।
इमामत की अवधारणा:
शिया मानते हैं कि इमाम (नेता) ईश्वर द्वारा नियुक्त होते हैं और अली के वंशजों में से होते हैं। उनके लिए इमाम न केवल धार्मिक नेता हैं, बल्कि आध्यात्मिक मार्गदर्शक भी हैं। शिया 12 इमामों (या कुछ समूहों में 7) में विश्वास करते हैं।
सुन्नी इस तरह की इमामत में विश्वास नहीं करते। उनके लिए खलीफा एक चुना हुआ नेता होता है, जो समुदाय का नेतृत्व करता है, लेकिन वह ईश्वरीय रूप से नियुक्त नहीं होता।
धार्मिक प्रथाएँ:
शिया मुसलमान अक्सर मुहर्रम में इमाम हुसैन की शहादत को याद करने के लिए मातम करते हैं, जिसमें जुलूस और शोक शामिल होता है।
सुन्नी भी मुहर्रम मनाते हैं, लेकिन उनके लिए यह उतना केंद्रीय नहीं है।
नमाज़ और अन्य प्रथाओं में भी कुछ छोटे-मोटे अंतर हो सकते हैं, जैसे हाथ बाँधने की स्थिति।
कानून और परंपरा:
शिया जाफरी फिकह (कानूनी स्कूल) का पालन करते हैं।
सुन्नी चार मुख्य फिकह स्कूलों (हनफी, मालिकी, शाफई, हंबली) में से किसी एक का पालन करते हैं।
जनसंख्या:
दुनिया भर में मुसलमानों में लगभग 85-90% सुन्नी हैं, जबकि 10-15% शिया हैं।
संक्षेप में, इन दोनों समुदायों का मूल विश्वास एक ही है—अल्लाह की एकता और पैगंबर मुहम्मद की पैगंबरी—लेकिन नेतृत्व, इतिहास और कुछ रीति-रिवाजों को लेकर मतभेद हैं। ये अंतर समय के साथ गहरे होते गए, लेकिन दोनों ही इस्लाम के अभिन्न अंग हैं।
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