एक जंगल है तेरी आँखों में,
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ।
- दुष्यंत कुमार
जले जो रेत में तलवे तो हमने ये देखा,
बहुत से लोग वहीं छटपटा के बैठ गए।
- दुष्यंत कुमार
एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ,
आज अपने बाजुओं को देख पतवारें न देख।
- दुष्यंत कुमार
हर तरफ़ एतराज़ होता है,
मैं अगर रौशनी में आता हूँ।
- दुष्यंत कुमार
तुम्हारे पावँ के नीचे कोई ज़मीन नहीं,
कमाल ये है कि फिर भी तुम्हें यक़ीन नहीं।
- दुष्यंत कुमार
उधर क़तारों में खड़े हुए लोग,
राशन नहीं, रोशनी लेने आए हैं।
- दुष्यंत कुमार
मेरे दिल पे हाथ रखो, मेरी बेबसी को समझो,
मैं इधर से बन रहा हूँ, मैं इधर से ढह रहा हूँ।
- दुष्यंत कुमार
एक बाज़ू उखड़ गया जब से
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ..
- दुष्यंत कुमार
महाकवि दुष्यंत ने अपने दोस्त कमलेश्वर जी से कहा था...
"ये दो कौड़ी के नौकरी-परस्त लोग...दोस्त चिंता मत कर हम भूखे मर जाएंगे पर लोग हमें याद करेंगे ... इन्हें नही ! क्या है इनके पास ... हमारे पास कविता भी है और कहानी भी...हमारी मुक्ति लेखन में ही है।"
#दुष्यंत_कुमार
No comments:
Post a Comment